केतु ग्रह, तंत्र मंत्र ,मोक्ष दुर्घटना ,शोक का कारक है
ज्योतिष शास्त्र में केतु ग्रह को मोक्ष का कारक माना गया है | किसी तरह का तंत्र मंत्र साधना और अचानक दुर्घटना व शोक का कारक केतु ग्रह है | राहु को सांप का मुंह और केतु को सांप के पूछ माना गया है ,सांप के मुंह में जहर और पूछ में शक्ति होती है| ज्योतिष शास्त्र में कुजवत केतु अर्थात केतु मंगल के समान है, ऐसा कहा गया है | केतु कुछ हद तक मंगल के समान लेकिन मंगल के मुकाबले और शक्तिशाली ग्रह है| केतु तंत्र-मंत्र साधना और कड़ी तपस्या को दर्शाता है | केतु एक क्रूर ग्रह है तथा संतान रोधी और गर्भपात को दर्शाता है | केतु की पौराणिक दृष्टिकोण केवल यही है कि समुद्र मंथन के समय राहु ने देव रूप धारण कर अमृत पान किया और फल स्वरूप विष्णु जी ने अपने चक्कर से उसका सिर काट डाला किंतु अमृत पीने के कारण राहु का शरीर जीवित रहा ,उस समय से धड़ का ऊपरी भाग राहु और गर्दन से नीचे का भाग केतु के नाम से विख्यात हुआ,केतु के पास सर नहीं है ,इसलिए इसके पास दिमाग नहीं है यह कुछ सोच विचार नहीं करता | जब केतु किसी की कुंडली में लगन में होता है ,केतु की दशा में वो जातक बिना कोई सोच विचार के काम करता है ,इसी कारण उस जातक को उस टाइम काफी नुकसान और परेशानी का सामना करना पड़ता है
केतु के मित्र और शत्रु |
केतु ग्रह को वृश्चिक राशि का को रूलर माना गया है| इसका विशेष अधिकार पैरों के तलवों पर रहता है| यह क्रूर और तामस स्वभाव का ग्रह है | केतु को धनु और वृश्चिक राशि में उच्च का माना गया है और वृषभ और मिथुन राशि में नीचे का माना गया है [केतु के उच्च और नीच के मामले में ज्योतिष आचार्यों में मतभेद है ,कुछ केतु को धनु में उच्च और मिथुन में नीच का मानते है और कुछ केतु को बृश्चिक में उच्च और वृषभ में नीच का मानते है ] जय बृहस्पति के साथ सात्विक और मित्रता का व्यवहार करता हैऔर सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानता है| केतु कुंडली में राहु से सदा सातवें स्थान में रहता है दोनों एक दूसरे से 180 डिग्री की दूरि पर रहते हैं-| केतु के मित्र राशियां ,मिथुन ,कन्या, धनु, मकर और मीन है तथा शत्रु रशि कर्क और सिंह राशि है|
केतु के अधीन शरीर के हिस्से|
केतु का मनुष्य की कुंडलिनी शक्ति का क्षेत्र अर्थात रीड की हड्डी से निचला हिस्सा तथा गुदा द्वार और बाहरी लिंग के बीच वाला हिस्सा केतु के अधिकार में है| और केतु जिस ग्रह के दृष्टि में हो या युति में हो उसे ग्रह के अधीन आने वाले शरीर के हिस्से पर भी केतु का अधिकार होता है|
केतु के अधीन बीमारियां |
केतु ग्रहभगंदर जैसी वेदनादायक बीमारियों का कारक, कुष्ठ रोग त्वचा की बीमारियां ,हल्की जाति के लोगों से पीड़ा और होने वाली परेशानी का कारक ग्रह है |
केतु के अधीन कारोबार|
केतु ग्रह औषधि का कारक तथा आयुर्वेदिक इलाजके लिए औषधि निर्माण करने वाली फार्मेसी और केतु तंत्र-मंत्र अध्यात्म से जुड़ा है इसलिए साहित्य ,अध्यात्म से जुड़े साधन धर्म ग्रंथ ,गुप्त विद्या से जुड़े कारोबार ,पंडित, पुजारी, ज्योतिषी, तांत्रिक ,देवी देवताओं के यंत्र बनाने वाले लोग ,किसी भी धर्म के धर्मगुरु , मंदिर ,अध्यात्म मंडल, आयुर्वेदिक औषधि बनाने वाली कंपनियां या वनस्पति से संबंधित निर्माण और केतु पर जिस ग्रह की दृष्टि,और केतु के साथ जिस ग्रह की युति उस ग्रह से संबंधित कारोबार भी केतु के अधीन आते हैं|
केतु के स्थान|
जहां पर तीन रास्ते मिलते हो वह स्थान चौराहा ,तपस्या तंत्र-मंत्र ध्यान धारणा के स्थान और औषधि निर्माण करने वाले स्थान और जो रास्ता आगे जाकर छोटा तंग होता चला जाए वह गली भी केतु का स्थान होता है |
निष्कर्ष |
केतु एक क्रूर ग्रह है जो त्वचा रोग और वेदना दायक बीमारियों का कारक है | तंत्र-मंत्र साधना और मोक्ष का कारक, जैसे सांप की पूछ में बहुत शक्ति होती है इसी तरह बहुत शक्तिशालीहै मंगल की तरह मजबूत है और अचानक दुर्घटना और शोक का कारकहै | केतु की महादशा में जातक को अचानक धन की प्राप्ति होती है ,पुत्र एवं स्त्री लाभ होता है तथा साधारण रूप से आमदनी बढ़ती है नीच के केतु की दशा में जातक को कष्ट होता है तथा अपने भाई बांधों का विरोध सहने को विवश होना पड़ता है नए कार्य को आरंभ करने में उसे असफलता का मुंह देखना पड़ता है| केतु संसारी सुख से इंसान को डिटैचमेंट देता है केतु इंसान को आधतम से जोड़ कर मोक्ष की तरफ लेकर जाता है | केतु सभी तरह के बंधनों सेमुक्त करता हैऔर परमात्मा की तरफ जोड़ता है |